शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

एक कली अभी तो खिली थी

 एक कली अभी तो खिली थी


 अभी अभी  तो खिली थी
वो एक उपवन की कली  थी
कुछ अलग किस्म की बनी थी 
दुनिया को समझने चली थी 


 एक भौंरा कुछ बौराया
 उपवन  से ही मंडराया था 
  उस कली को घूरता  रहता था                                     
 कुछ  गन्दी नीयत  रखता था 
                                     
            
एक  ऐसी आंधी आई थी 
वो कली उसमे उलझाई थी 
 लड़ते - लड़ते थक आई थी 
फिर भी हिम्मत ना  हारी थी 


ताकत के आगे बेबस थी 
उसकी दुनिया अब उजड़ी थी 
जीने की चाहत अब भी थी 
अंधियारी में भी रोशनी थी 
एक कली अभी तो खिली थी ............................ 

बुधवार, 28 नवंबर 2012

     थोड़ा समय सिर्फ और सिर्फ अपने लिए

हम सभी जीवन में अपनी ही  धुन में  रहते हैं ।  बहुत कुछ पा लेने की तमन्ना होती है और हम उसी  के पीछे  भागते -भागते कब खुद  से दूर हो जाते हैं पता ही नहीं चलता । हमसे जुड़े सभी रिश्ते हमसे बहुत कुछ पा लेते हैं और अपनी दुनिया में आगे बढ़ जाते है पर हम पुनः नए रिश्तों और अपनों के बीच ही सिमटे रहते हैं । ये सही है कि जिन्दगी अकेले नहीं जी सकते , हर मोड़ पर हमें कुछ अपनों का साथ भी होना  चाहिए ।  कभी हम उनके काम आये तो कभी वो हमारे , लेकिन इन सब के बीच कुछ पल हमें अपने लिए भी रखने चाहिए जिसमे खुद के सिवा  और कोई नहीं हो। सिर्फ  अपनी बातें  हो और हो थोडा सा सुकून हो , खासकर  महिलाएं  तो अपने लिए समय कम ही निकाल पाती हैं लेकिन जिंदगी को बेहतर ढंग से जीने के लिए थोड़ा समय अपने लिए भी होना चाहिए .................       


जीवन की आपाधापी में
रिश्ते जुड़ते ही जाते हैं
हम तन्मयता को भूल गए
 अपनों में ही खो जाते हैं
कब  दिन  बीता जो अपना  था
कब पल वो केवल अपना था
कुछ बातें  करनी थी  खुद से
वो बातें कब की बीत गयी
हम अब भी मूक-बधिर बनके
बस यूँ ही देखते रहते हैं 
जीवन की आपाधापी में
रस्ते कितने मिल जाते हैं 
हम कितने दूर निकलते गए 
यह सोंचते ही  जाते हैं 
कुछ पल जो छूट  गए हमसे 
कुछ हम ही छोड़ते जाते हैं 
जीवन की आपाधापी में ..................

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

चेहरे का भाव            

एक मधुर स्पंदन 
तृप्त  हुआ व्याकुल मन 
तुम्हें गोद में लेकर 
मैं भूल चुकी सारे बंधन 
ममत्व की छाँव में 
सर्वोतम सुख पाने की 
जो ख़ुशी है मुझमे 
हाँ तुम्ही पढ़ सकती हो 
मेरे चेहरे का भाव 
 महसूस कर सकती हो 
कि मैं तेरी जननी हूँ
क्योंकि एक दिन होगा 
यही भाव तेरे चेहरे का । 

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

सपने 

बोझिल आँखें 
नींद से भरी रातें 
सरकते समय को 
पकड़ने की कोशिश 
रोजमर्रा की भागमभाग 
फिर भी बनते सपने 
जो खुली आँखों से 
देखे जाते , गढ़े  जाते 
टूटते , फिर बनते 
यथार्थ और कल्पनाएँ 
जहाँ एकाकार होने को आतुर 
रुकने का नाम न लेती 
हाँफती सांसें 
सपनों के बीच 
भागती रातें 
करवटों में गुजरती रातें 
बहुत कुछ पाने की होड़ में 
दौड़ लगाते 
कभी न थकते 
उम्मीद से बने इरादे 
पुनः बढ़ते जाते 
सपनों के दायरे ।

शनिवार, 8 सितंबर 2012

           कितना सहेंगी हमारी बेटियां 

बिहार के सीतामढ़ी की कंचन बाला  जब ऊपर भगवान  के पास पहुंची होगी तो जरुर पूछी होगी कि मुझे लड़की क्यों बनाया ? काश ! मुझे भी लड़का बनया होता , मैं भी जी पाती शान से और पूरी कर पाती  अपने सपने , जो मैंने देखे थे । जी पाती आजादी से बंधनमुक्त आजाद पंछी की भांति । कोई मनचला हमें नहीं छेड़ पाता और न ही मुझे मानसिक प्रताड़ना प्रताड़ना मिलती । मेरी बात किसी ने नहीं सुनी और वो मुझे परेशान  करता रहा , अंत में मुझे मौत को गले लगाना पड़ा । जब मैं ही नहीं रहूंगी तो वो किसे तंग करेगा ?
                   यही सवाल छोड़ गयी है कंचनबाला समाज के सामने । उसकी बेबसी ने उसे आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया । कोई रास्ता नहीं बचा था उसके पास इसीलिए उसने अपने सुसाइड नोट में  ये लिखा । इसमें उसकी जैसी हजारों लड़कियों के साथ हो रहे अत्याचार की झलक मिलती है और उनकी बेबसी की झलक मिलती है ।
                 कंचन बाला भी उन्ही हजारों लड़कियों की तरह छेड़खानी की शिकार बनी और जब-जब उसने विरोध किया सजा उसे ही भुगतनी पड़ी । घर-परिवार के लोग उसे ही दोषी ठहराते रहे और वो मनचला उसे लगातार अपना शिकार बनाता  रहा । जितना उससे बन पड़ा उसने उसका विरोध किया । उसका भाई जब उसका रक्षक बना तो उसे उन बदमाशों ने काफी पीटा । जब रिपोर्ट लिखाने  थाने गयी तो पुलिस ने कोई सहायता नहीं की बल्कि उससे समझौता करने की सीख  दी । पुलिस यदि समय पर उसकी सहायता करती तो वो मौत को गले नहीं लगाती पर पुलिस ने सीख  दी कि इससे लड़की की बदनामी होगी , फिर तो वो बदमाश और भी आगे बढ़ गया । अब कंचन बाला हताश  हो चुकी थी । उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था । पढाई छूट  गयी । इस कच्ची उम्र में उसने समाज की गन्दगी को नजदीक से देखा । कितना मानसिक तनाव और बेबसी में होगी उस रात जब उसने आत्महत्या का निर्णय लिया होगा । अपने सुसाइड नोट में उसने पुलिस को जिम्मेदार ठहराया और प्रार्थना की कि उस बदमाश को सजा दी जाय ।
                   इस तरह की घटना के लिए कौन जिम्मेदार माना जायेगा ? अगर सही समय पर उसकी मदद की गयी होती वो आज हमारे बीच हंसती - खेलती होती ।

शनिवार, 1 सितंबर 2012

जीवन तो दो ............

जीवन  तो दो ............

छू  तो लिया हमने
आसमान की बुलंदियों को
और तुम नीचे  से            
हमारी ही आँखों से
देख रहे हो अंतरिक्ष के
अनसुलझे रहस्यों को
जो तुम्हारी पहुँच से है दूर
पर मैंने पा लिया है
कई बेटों को पछाड़
भर ली ऊँची उड़ान
मैं भी तो बेटी ही हूँ
फिर क्यों मुझ जैसी ही
बेटियों को मार देते हो
जन्म  लेने से पहले
जीवन तो दो बेटियों को
कर सकती है वो
हर सपने साकार
बस एक ऊँगली थाम 
बेटियाँ  हैं  अनमोल उपहार
बस जीवन तो दो .........